नागरिकता कानन

क रेला और नीम चढ़ा वाली कहावत 4 समझनी है तो नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को देख लीजिए। इसमें करेला है 'नागरिकता (संशोधन) कानून' जो 12 दिसंबर से लागू हो गया है। इसके मुताबिक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से जो लोग गैर-कानूनी तरीके से भारत में घुसे या बसे हुए है, उनमें जो मुसलमान है, उन्हें विदेशी घुसपैठिये मानकर उन पर कार्यवाई होगी। लेकिन जो गैर-मुस्लिम है, उनके खिलाफ कुछ नहीं होगा, बल्कि उन्हें बिना किसी कागज के भारत का नागरिक मान लिया जाएगा। यानी पहली बार कानून बनाकर देश की नागरिकता को धर्म से जोड़ दिया गया है। पहली बार भारत में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम के बीच एक कानूनी लाइन खींच दी गई है। यह करेला राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) नामक नाम के पेड़ पर चढ़ेगा। इस रजिस्टर में नाम लिखवाने के लिए सिर्फ राशन कार्ड या आधार कार्ड होने या वोटर लिस्ट में नाम होने से काम नहीं चलेगा । हर मई-औरत, बच्चे-बूढ़े को भारत का नागरिक होने का सबूत देना पड़ेगा। यानी अस्म की तरह देशभर में अफरा-तफरी मचेगी, हर व्यक्ति को जन्म, शादी या पते का कानूनी सबूत जुटाना पड़ेगा, टाइम और पैसा खर्च होगा। अब समझिए कि करेला और नीम मिलकर क्या असर करेंगे? अगर दस्तावेज में कमी रह गई तो मुसलमान के लिा लिए वोटर लिस्ट से नाम काटने का डर होगा, फिर गिरफ्तारी और विदेशीयों के औप में बंद होने का खतरा । जो मसलमान नहीं है, उन्हें अवैध घुसपैठी होने के बावजूद छूट मिल सकती है, लेकिन तभी अगर उनका परिवार पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से आया है। वहां भी पूरी छूट नहीं होगी। नेपाल से आए हिन्दू गोरखा और मधेसियों के सिर पर भी तलवार लटकेगी। क्या जरुरतशीस कानून की? अब आप पूछेगे कि बैठे-बैठाएइस कड़वे इंजेक्शन की क्या जरूरत थी? सरकार कहती है कि यह कानून हमारे पड़ोसी देशों में भेदभाव के शिकार होने वाले लोगों को शरण देने के लिए है। अगर ऐसा होता तो बहुत अच्छी बातथी। लेकिन अगर पड़ोसी देशों के पीड़ित लोगों को शरण देनी थी तो चीन, नेपाल, श्रीलंका और म्यांमार पर इसे लागू क्यों नही किया गया? अगर भेदभाव के शिकार लोगों की मदद करनी थी तो पाकिस्तान के बलूचिस्तान, नेपाल की तरई, बांग्लादेश से आए बिहारी और श्रीलंका के तमिल लोगों को शरण क्यों नहीं दे रहे?