जनता से जुड़े नगरीय विकास और स्वायत्त शासन के सात ऐसे कानून हैं, जो विधानसभा में बार-बार पारित होने के बावजूद अफसरशाही ने लागू नहीं किए। किराया नियंत्रण कानून तीन संशोधनों के बाद अंतिम बार 2017 में पारित हुआ। हालात यह है कि न तो किराएदारों को हक दिलाने वाला कानून लागू हुआ और ना ही अपार्टमेंट मालिकों के लिए अपार्टमेंट ओनरशिप बिल। यह बिल 2003 से बनाया जा रहा है। चौथी सरकार चल रही है, लेकिन एक्ट लागू नहीं हुआ। 16 साल से एक ही जवाब-विधिक परीक्षण में गया हुआ है। इसी तरह गुजरात की तर्ज पर लैंड पूलिंग एक्ट तो टेबलों पर घूमते-घूमते घिस गया। पांच-छह साल से विधिक और वित्तीय परीक्षण के लिए ही बार-बार भेजा जा रहा है। भूमालिकों को जमीन का परमानेंट मालिकाना हक का लैंड टाइटल एक्ट भी पूरी तरह से लागू नहीं किया। सड़कों के किनारे ठेला-थड़ी वालों के लिए अलग जोन बनाने, लाइसेंस देने का स्ट्रीट वेंडर्स प्रोटेक्शन कानून भी कागजों में ही है। न टाउन वेंडिंग कमेटियां बनीं, न वेंडिंग जोन बने। इंस्पेक्टरराज के तहत अब भी उसी ढर्रे पर ठेले-थड़ी उठाने और 100 रुपए कमाने वाले व्यक्तियों पर 11 हजार जुर्माने का खेल चल रहा है।
फ्लैटधारकों को जमीन का हक दिलाने वाला कानून 17 साल से बन रहा, 2 विधानसभा से पास हुआ
शहरों की वर्टिकल ग्रोथ को देखते हुए हाईराइज बिल्डिंग्स के नियम-कायदे लागू करने और बिल्डरों पर अंकुश के लिए राजस्थान अपार्टमेंट ओनरशिप बिल बनाया गया। 2003 से दो बार विधानसभा से पारित हो चुका। पहली बार 2015 में पास हुआ। 2008 में राज्य से पारित होते ही केंद्र ने इसे लौटा दिया था। पिछली 3 सरकारें इसे लागू नहीं करा पाईं। यह चौथी सरकार है। बिल विधिक और फाइनेंस परीक्षण के लिए भेजा हुआ है।
सबसे ज्यादा फायदा फ्लैटधारक को होता
- कानून लागू हो तो अपार्टमेंट में रहने वाले लोगों को फ्लैट के साथ जमीन का संयुक्त रूप से मालिकाना हक मिलेगा।
- अपार्टमेंट टाइम पर नहीं देने पर जुर्माना लगेगा। अपार्टमेंट की डीड को एग्जीक्यूट कराने की भी जिम्मेदारी बिल्डर की। बिल्डर के इंडेक्स ऑफ रजिस्ट्रार के नियमों के तहत भी डीड करानी होगी।
- हर बेचान की रजिस्ट्रार कार्यालय में एंट्री जरूरी। अपार्टमेंट केवल रिहायशी भवन के लिए नाम नहीं दिया गया है। 12 मीटर से ऊंचे आवासीय, वाणिज्यिक, प्रोफेशनल आदि के लिए प्रयुक्त होने वाले भवन इस श्रेणी में आएंगे।
लैंड पूलिंग एक्ट; राष्ट्रपति से मंजूर
गुजरात की तर्ज पर राजस्थान लैंड पूलिंग एक्ट पिछली सरकार में 2016 में पारित हुआ। जुलाई 2018 में राष्ट्रपति से मंजूरी भी मिल गई, लेकिन आज भी विधिक परीक्षण में अटका है। एक्ट लागू होते ही शहरों से सटी जमीन को मालिकों की सहमति से जमीन ली जा सकती थी। 55% विकसित भूमि जमीन मालिक को वापस देने का प्रस्ताव है।
स्ट्रीट वेंडर्स प्रोटेक्शन एक्ट लागू नहीं
प्रदेश के निकायों में 2011 में स्ट्रीट वेंडर्स प्रोटेक्शन आफ लाइवलीहुड एंड रेगुलेशन एक्ट पास हो रखा है, लेकिन आज तक न टाउन वेंडिंग कमेटियां बनीं। एक्ट प्रभावी हो तो गली-मोहल्लों में थड़ी-ठेले खड़े नहीं मिलें। वेंडर्स को लाइसेंस और परमानेंट स्थान मुकर्रर हाे जाएगा।
कानून बने पर प्रभावी आज भी नहीं
- राजस्थान झील (संरक्षण एवं विकास) प्राधिकरण बिल-2015 लागू होता तो सांभर त्रासदी में त्वरित कार्रवाई होती: झील विकास कानून लागू होता तो सभी झीलों की सीमाएं पक्की बाउंड्री के साथ तय हो जातीं। अतिक्रमण हटते। झील क्षेत्र में निर्माण की ऊंचाई और आकार तय हो जाता। झीलों के विकास के लिए फंड मिलता।
- लैंड टाइटल एक्ट तीन साल से जयपुर से बाहर नहीं निकला: पिछली सरकार ने जमीन मालिकों को हक दिलाने के लिए लैंड टाइटल एक्ट-2016 पारित किया। जयपुर में एक-दो लोगों को टाइटल देकर कानून खत्म सा हो गया। विधेयक पारित करने वाला राजस्थान पहला राज्य तो बना था। निकायों द्वारा शहरी क्षेत्रों में रहने वाले राज्य के निवासियाें को भूमि मूल्य का 0.5% भुगतान कर जमीन स्वामित्व का प्रमाण-पत्र दिया जाना था। एक प्राधिकरण बनना था, जो नहीं बना।
- संपत्ति विरूपण कानून तो बनाकर रद्दी में डाल दिया: प्रदेश में संपत्ति विरूपण निवारण बिल 2015 में पारित हुआ, लेकिन केंद्र का इसी तरह का कानून आने के बाद सरकार ने इस कानून को लागू ही नहीं किया। कुछ चैप्टर म्यूनिसिपल एक्ट में जोड़कर इतिश्री कर ली।